काश के ऐसा होता

आसमान भी बांट दे देते हैं लोग। ये मेरा ये तुम्हारा। जहां जहां जमीनों पर लकीरें खिंची हैं वहाँ का आसमान भी कब्जे में है उन अदृश्य लकीरों के। 

अब जरा उल्टा सोच के देखिये ! 

कितना अच्छा होता अगर आसमान ऊपर नही नीचे होता और धरती ऊपर होती? 

वैज्ञानिक तौर पर नही, भावनाओ को आगे रखकर सोचिये जरा। 

ये सरहदें ना होती फिर, कोई रेखाएं खींच ही नही पाता, हम मनुष्य की तरह जी रहे होते, मानवीयता भी छूटती नही, पृथ्वी की तरह हम इसे गंदा भी नही करते क्योकि आधारिक संरचना कुछ होती ही नही, नग्न होते सभी तो कोई भेद नही रहता, न स्त्री पुरुष में कोई आकर्षण रहता और न तो बच्चीयों और महिलाओं की बदहवासी होती। 

न कोर्ट होते न कानून होते, न कानून तोड़ने वाला कोई होता।

 ना बंगले होते ना चौलें होती, सब एक समान एक जगह पर। 

कोई वर्ण अव्यवस्था ना होती। 

पशु ना होते तो, न खाने का और न पूजा का संयोग बनता। 

पक्षी की कलरव मिठास घोलती रहती हर जगह। 

पेड़ न होते तो काटने की नौबत ही नहीं आती। 

खुली हवा होती, धूप होती, जो मिलती वही प्राणवायु समझ के ले लेते। 

तब नदियां, पेड़, झरने, समुद्र, पशु सब अपनी जगह स्वच्छ व खुशहाल रहते और हम उन्हें दूर से देख कर मन मे कह रहे होते की काश जमीन नीचे होती और आसमान ऊपर। 


श्रुतिका

27/2/2019

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