कलाकार

 

ये मुक्तछंद की कविता है उसे उन्मुक्त गगन में रहने दो। 

भरने दो उड़ाने मीलों ऊँची , ना रहने दो उसे उस कठियारे में जहाँ वायु कम है। 

श्वास उसकी आत्मा है, निश्वास वो (कलाकार) निर्जीव है। 

कला है उसका अलंकरण न अलंकृत करते गहने उसको। 

भिन्न है सबसे पर अभिन्न नहीं 

जैसे अमूर्त स्वरों का शब्दों  से बंधन 

जैसे नाता है रात्रि का दिवस से 

जैसे मूर्तता का अमूर्तता से सम्बन्ध 

जैसे प्रेम है पृथ्वी का गगन  से 

जैसे मस्तिष्क व हृदय में स्पंदन 

जैसे सूर्य, चन्द्र और तारे 

इनके  रचयिता  को वंदन 

भिन्न होकर भी अभिन्न रहना, मूर्त होकर भी अमूर्तता का लक्ष्य रखना, समाज से ही निकली हुयी यह कलाकार रुपी धारणा का वापस समाज  में ही विलीन हो जाना, कितना अद्भुत है।


श्रुतिका 2017


टिप्पणियाँ

  1. सही बात काही.. कलाकार का विश्व है उसकी कला, कार्य है निर्मिती, वो माध्यम है उस असीम शक्ती का जिससे वरदान मिला है कला का ....

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  2. सही कहा। आप खुद भी एक कलाकार हैं और बहुत अच्छे से समझ सकती हैं। आपके कॉमेंट के लिए बहुत बहुत धन्यवाद् 😊

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