रंग

 रंगों में - उलझने बहुत हैं। 

खेलते खेलते एक समय ऐसा, कि रंग काले में परिवर्तित हो जाता है।  फिर सफ़ेद में प्रविष्ट हो जाता है,  फिर आधा कला और आधा सफ़ेद...... 

⚪और इस सफ़ेद में समाहित है वो सारे रंग, जो घूमती हुयी रंगों की चक्री पर पड़े हुए सूर्य के प्रकाश के कारण सफ़ेद हो जाते है..... और काला रंग उस सफ़ेद का ही प्रतिबिम्ब है, जो ना हो तो  सफ़ेद का महत्व नहीं रहेगा। 

⚫और हम (कलाकार ) उस सफ़ेद में दबे हुए काले को खींचते हुए रेखाओं में परिवर्तित कर देते हैं तथा  उस विस्तारित सफ़ेद (अंतराल) को सिमित कर देते हैं।  

             ⚪सिमित हुआ सफ़ेद "आकार के अकार" में बंध कर एक विस्मित अनुभूति के रूप में हमारे मन की प्रतिमाओं (फॉर्म्स) जैसा कुछ जाना पहचाना प्रतीत होता है। किसी परिचित रूप से एकात्म होने का आनंद उसी प्रकार होता है, जैसे बचपन में कल्पना की हुयी कोई वस्तु लौकिक रूप में हमारे सामने आ जाए और हम उससे वार्तालाप का आनंद ले सकें। 🔴🟠🟡🟢🔵🟣🟤⚪⚫

श्रुतिका 10/9/11

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मतवाला

काश के ऐसा होता

कलाकार